लखनऊ। गलवान में चीन के साथ झड़प आज भी हर भारतीय को याद है। गला देने वाली ठंड में किस तरह चीन के सैनिकों ने तार लगे डंडों और पत्थरों से भारतीय सेना पर हमला किया था। गलवान में दोनों देश की सेना हथियारों का इस्तेमाल नहीं करती। लेकिन, चीन ने गैरपारम्परिक हथियारों का इस्तेमाल कर बता दिया कि वो किस हद तक जा सकता है। इसके बाद भारत ने भी इससे सबक लेते हुए अपनी तैयारियों को अंजाम दे दिया है।
इसके तहत भारतीय सेना पारम्परिक हथियारों से लैस हो गई है। सेना के पास इन्द्र का वज्र और शिवजी का त्रिशूल भी है जो कि दुश्मनों के घातक हथियारों का माकूल जवाब देने में सक्षम हैं। इसी तरह वज्र, त्रिशूल, सैपर पंच, दंड और भद्र ऐसे हथियार हैं जो कहने को भले ही पारम्परिक हैं। लेकिन, आधुनिक तकनीक से जुड़कर काफी घातक हो गए हैं। हर हथियार की अपनी खासियत है।
Opposition plays the old game again
उत्तर प्रदेश की एक फर्म एपेस्ट्रॉन प्राइवेट लिमिटेड ने भारतीय सुरक्षा बलों के लिए इन पारम्परिक भारतीय हथियारों से प्रेरित गैर-घातक हथियार विकसित किए हैं। एपेस्ट्रान प्राइवेट लिमिटेड के चीफ टेक्नोलॉजी आफिसर (सीटीओ) मोहित कुमार के मुताबिक हमारे पारम्परिक हथियार घातक हथियारों से कई गुना असरदार हैं। हमने भारतीय सुरक्षा बलों के लिए अपने शास्त्रों के पारम्परिक हथियारों से प्रेरित ऐसे ही टैसर और गैर-घातक भी विकसित किए हैं।
इन हथियारों की बात की जाए तो ‘वज्र’ के नाम से स्पाइक्स के साथ एक मेटल रोड टेजर विकसित किया है। इसका इस्तेमाल दुश्मन सैनिकों पर आक्रामक रूप से हमला करने के साथ-साथ उनके बुलेट प्रूफ वाहनों को पंचर करने के लिए भी किया जा सकता है। वज्र में स्पाइक्स भी होते हैं जो एक अनुमेय सीमा के तहत करंट यानी विधुत का निर्वहन करते हैं और दुश्मन के सैनिक को आमने-सामने की लड़ाई के दौरान उसे निष्काम भी बना सकते हैं। इस तरह ये ये हथियार दुश्मन को उसी अंदाज में जवाब देंगे।