लखनऊ। दुनियाभर में बाघों को संरक्षण देने और उनकी प्रजाती को विलुप्त होने से बचाने के लिए आज अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है। वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में इसे मनाए जाने की घोषणा हुई थी। इसके बाद से ही 29 जुलाई का दिन अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को तय करते समय वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुनी करने के प्रयास का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। इसके लिए अब महज एक साल का समय बचा है। ऐसे में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हमारे इस राष्ट्रीय पशु के संरक्षण के लिए भविष्य की ओर देखते हुए तेजी से प्रभावशाली कदम उठाने की दरकार है।
कुछ राज्यों का शानदार प्रदर्शन, कुछ पिछड़े-कुछ फिसड्डी
दरअसल दुनियाभर के मात्र 13 देशों में ही बाघ पाए जाते हैं, वहीं इसके 70 प्रतिशत बाघ केवल भारत में हैं। वर्ष 2010 में भारत में बाघों की संख्या लगभग 1,706 पहुंच गई थी। इनमें प्रमुख रूप से मध्य प्रदेश में 257, कर्नाटक में 300, उत्तराखण्ड में 227 और उत्तर प्रदेश में 118 बाघ थे। इसके बाद से इस दिशा में तेजी से काम किय गया और वर्ष 2018 की गणना के अनुसार देश के 20 राज्यों में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई। तब मध्य प्रदेश में 526, कर्नाटक में 524, उत्तराखण्ड में 442 और उत्तर प्रदेश में 173 बाघ पाये गये। इनकी 2022 के लक्ष्य से तुलना करें तो उत्तर प्रदेश की स्थिति में सुधार तो हुआ है, लेकिन ये लक्ष्य से काफी पीछे है। जबकि कुछ राज्य पहले ही इसे पूरा कर चुके हैं। हालांकि देश के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा में बाघों की संख्या में इजाफा होने के बजाय गिरावट देखी गई। छत्तीसगढ़ में 26 बाघ थे, जबकि 2018 में 19 रह गये। इसी तरह झारखण्ड में 10 से 5 रह गये और उड़ीसा में 32 से 28 रह गये।
उत्तर प्रदेश में और सम्भावनाएं बाकी
उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां दुधवा और पीलीभीत, दो टाइगर रिजर्व हैं। वन महकमे के मुताबिक पीलीभीत टाइगर रिजर्व में वर्ष 2014 में महज 25 बाघ थे लेकिन, 2018 में 65 हो गये। पीलीभीत टाइगर रिजर्व एक तरह से अब सेचुरेटेड हो गया है। दूसरी ओर वर्ष 2018 में हुई टाइगर स्टीमेंशन के दौरान दुधवा टाइगर रिजर्व में 107 बाघ होने का अनुमान लगाया गया था, जबकि 2014 के स्टीमेंशन में यह आंकड़ा 67 के करीब था। इस तरह चार दुधवा और पीलीभीत दोनों की जगहों पर बाघों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ये संख्या और बढ़ सकती थी, क्योंकि वन महकमा प्रदेश में बाघों की अकाल मृत्यु, आपसी संघर्ष, इन्सानी संघर्ष और सड़क हादसों में मौत को भी इनकी संख्या में कुछ कमी होने का कारण बता रहा है।
इन्सान अपनी हद में रखकर बचा सकता है संघर्ष
तराई खासकर खीरी और पीलीभीत जिले की बात करें तो वहां के जंगलों से निकलकर बाघों के गन्ने के खेतों में बसेरा बनाने के चलते मानव बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। पिछले दस वर्षों में ही बाघों के हमले में 60 से अधिक लोग अपनी जान गवां चुके हैं। करीब छह बाघ भी इन हमलों की प्रतिक्रिया स्वरूप मारे जा चुके हैं। इसके अलावा जंगल से बाहर रहने पर यह बाघ आसानी से शिकारियों के निशाने पर आ जाते हैं। शिकारी इनका शिकार कर लेते हैं और कभी कभी वन विभाग को इनका पता भी नहीं चल पाता।
मुख्य वन संरक्षक और दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक के मुताबिक तराई में मानव बाघ संघर्ष रोकना एक बड़ी चुनौती है। जंगल से निकलकर गन्ने के खेतों में बाघों के बसेरा बनाने से उनकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होता है। वन विभाग मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं को रोकने के लिए लगातार काम कर रहा है। जल्दी ही इसके सार्थक परिणाम मिलेंगे।
चार रेस्क्यू सेंटर और एक रिवॉइल्डिंग सेंटर होगा मददगार
इसी के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में बाघ और तेंदुओं को बचाने के लिए चार रेस्क्यू सेंटर और एक रिवॉइल्डिंग सेंटर बनाने के लिए नेशनल कैंपा कमेटी (ईसी) ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय श्रीवास्तव के मुताबिक इस सम्बन्ध में एक दो दिन में औपचारिक आदेश मिलने की उम्मीद है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में बाघों और तेंदुओं के आबादी में आने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। जंगल से सटे इलाकों में मानव और पालतू पशुओं पर हमले भी आए दिन हो रहे हैं। इस पर काबू पाने के लिए राज्य सरकार ने पीलीभीत, मेरठ, महराजगंज और चित्रकूट में एक-एक रेस्क्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। कंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (कैंपा) की राष्ट्रीय कार्यकारी कमेटी ने इसे वाजिब ठहराया। अब रेस्क्यू सेंटर के लिए कैंपा फंड मुहैया कराएगा। एक रेस्क्यू सेंटर की लागत करीब 4.90 करोड़ रुपये आएगी। वन महकमे के मुताबिक पीलीभीत में बाघों के लिए रिवाइल्डिंग सेंटर बनाने पर भी नेशनल कैंपा की ईसी ने सहमति दे दी है। यह सेंटर करीब 25 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाया जाएगा। जो भी बाघ आबादी वाले इलाकों में पकड़ में आएंगे, उन्हें कुछ दिन यहां रखकर फिर से उन्हें जंगली बनाने में मदद की जाएगी।
पारिस्थितिक तंत्र में बताया जा रहा बाघों के महत्व
वन अधिकारियों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस घोषित करने के बाद लोगों में इनके संरक्षण को लेकर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के महत्व को भी बताया जाता है। देश में बाघों की संख्या में अगर इजाफा देखने को मिला है, तो उसके पीछे ये भी एक वजह है। बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनके ऑक्युपेंसी एरिया भी बढ़ रहा है। सरकार और जनता के अपने अपने स्तर पर किए प्रयासों से और बेहतर नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाघों के संरक्षण को लेकर की अपील
‘अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस’ हम सभी को अपने राष्ट्रीय पशु के संरक्षण हेतु जागरूक करता है। आइए, पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने और बाघ प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने के लिए गति व शक्ति के प्रतीक ‘बाघ’ के संरक्षण हेतु संकल्पित होकर ‘अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस’ को सार्थक बनाएं।