देहरादून। विधानसभा चुनाव से पहले सियासी हितों के मद्देनजर नेताओं की निष्ठा भी बदलने लगी है और अपने नफा-नुकसान का आकलन कर वह एक पाले से दूसरे पाले में जाने में जुट गये हैं। इसी कड़ी में उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य ने कांग्रेस में शामिल होकर अपनी घर वापसी कर ली है। कल तक भाजपा का गुणगान करने वाले पिता पुत्र अब कांग्रेस को मजबूत करने की बात कह रहे हैं। वहीं अपने इस दांव से कांग्रेस ने दलित वोटों में सेंध लगाने की सियासी चाल चली है। यशपाल राज्य की राजनीति में बड़ा दलित चेहरा होने के साथ तराई की छह से अधिक सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इसके साथ ही कांग्रेस को अब राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा के बाद अब यशपाल के रूप में दूसरा बड़ा दलित चेहरा मिल गया है। इससे पार्टी का आत्मविश्वास मजबूत हुआ है।
भाजपा को परिवार बताकर नाराजगी से किया था इनकार
यशपाल आर्य बाजपुर और उनके बेटे संजीव आर्य नैनीताल विधानसभा सीट से विधायक हैं। पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल में यशपाल आर्य के पास परिवहन, समाज कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, छात्र कल्याण, निर्वाचन और आबकारी जैसे अहम विभाग थे। कुछ दिनों पहले ही यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य की कांग्रेस में घर वापसी की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अचानक आर्य के सरकारी आवास पर पहुंचे थे। नाश्ते की टेबल पर दोनों नेताओं के बीच आधे घंटे से अधिक की गुफ्तगू हुई थी। इसके बाद मुख्यमंत्री धामी और यशपाल दोनों ने नाराज होने जैसी चर्चाओं को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया था। यशपाल आर्य ने तब कहा था कि वह भाजपा कार्यकर्ता हैं। जो भी जिम्मेदारी दी जाती है, उसका निर्वहन करते हैं। पार्टी मेरा परिवार है और मैं इसका हिस्सा। फिर क्यों नाराज हूंगा। नाराजगी जैसा ऐसा कुछ भी नहीं है। उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा उन्हे मनाने और दलबदल की चर्चाओं को सत्य से परे बताया था।
अब यशपाल आर्य के इस दांव से भाजपा नेता भी भौंचक्के हैं। देखा जाए तो यह चर्चा पहले ही आम थी कि आर्य भाजपा के भीतर सहज नहीं हैं। कांग्रेस के हलकों से भी ऐसी सूचनाएं आ रहीं थीं कि आर्य घर वापसी कर सकते हैं। प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी संकेत दिए थे कि भाजपा के कई नेता कांग्रेस के सम्पर्क में हैं और 15 अक्तूबर के बाद सत्तारूढ़ पार्टी को पता चल जाएगा। इससे पहले ही पार्टी ने इसे सच साबित कर दिखाया।
भाजपा छोड़ने की वजह नाराजगी नहीं, अपना सियासी लाभ देखा
सूत्रों के मुताबिक यशपाल आर्य की घर वापसी की एक माह पहले ही दिल्ली में पटकथा लिखी जा चुकी थी। दिल्ली में उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से से मुलाकात की थी। वहीं नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से भी कई दौर की वार्ता हुई। यही वजह थी कि बीते दिनों हरीश रावत ने दलित के बेटे को जीवनकाल में मुख्यमंत्री देखने की बात कही।
उत्तराखण्ड में वर्ष 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी तो उस समय यशपाल आर्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और अच्छे मंत्रालय दिए गए थे। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता की वजह से गुटबाजी के कारण वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से पहले वह भगवा खेमे में चले गये। हालांकि यहां भी उन्हे काफी अहयिमत दी गई, महत्वपूर्ण विभाग दिये गये। लेकिन, वर्तमान सियासी परिस्थियितों में यशपाल खुद को असहज महसूस कर रहे थे। वहीं जिस तरह से हरीश रावत ने दलित मुख्यमंत्री का बयान दिया, उसे लेकर सम्भावना जतायी जा रही है कि कांग्रेस यशपाल को लेकर ऐसा कोई दांव चल सकती है। राजनीतिज्ञ विश्लेषकों के मुताबिक यशपाल को भाजपा में कोई दिक्कत नहीं थी। मुख्यमंत्री धामी ने भी उनसे मुलाकात कर महत्व दिया था। हकीकत में यशपाल अपनी सुविधा देखकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। कृषि कानून को लेकर जिस तरह से तराई में आन्दोलन चल रहा है, उसमें बाजपुर विधानसभा पर ज्यादा असर पड़ने की सम्भावना है। यह सीट सिख और किसान बहुल मानी जाती है। यशपाल आर्य को लग रहा था कि भाजपा के खिलाफ बने माहौल का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। ऐसे में उन्हें अपनी सीट खतरे में दिखायी दे रही थी। इसीलिए उन्होंने घर वापसी की राह चुनी।
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कांग्रेस में शामिल होकर सुकून हो रहा महसूस: यशपाल आर्य
कांग्रेस में वापसी के बाद यशपाल आर्य ने सुकून महसूस करने की बात कही। बकौल यशपाल उनके सियासी सफर का आगाज कांग्रेस से हुआ। उन्होंने 40 साल तक कांग्रेस में काम किया है। उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखण्ड तक, जिलाध्यक्ष से लेकर विधानसभा अध्यक्ष के रूप में सेवा दी है। दो बार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष रहा। कांग्रेस ने उन्हें हमेशा बड़ी जिम्मेदारी दी। आज फिर से कांग्रेस में शामिल हुए हैं। यशपाल ने कहा कि उनका धर्म-कर्म होगा कि कांग्रेस को उत्तराखण्ड में स्थापित करने में काम करें। कांग्रेस मजबूत होगी तो लोकतंत्र मजबूत होगा, एक कार्यकर्ता के रूप में काम करेंगे। अब कोई लालसा नहीं है, जो भी जिम्मेदारी दी जाएगी उसे ईमानदारी से निभाएंगे।
मुख्यमंत्री धामी बोले-यशपाल आर्य का व्यक्तिगत हित आ गया था आगे
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यशपाल आर्य के कांग्रेस में शामिल होने पर कहा कि हमने सभी लोगों को सम्मान किया है। हमने परिवार माना है। हमने राष्ट्र प्रथम, संगठन द्वितीय और व्यक्ति तीसरा का सिद्धांत रखा है। भाजपा में व्यक्तिगत हित अन्तिम स्थान पर है। मैं समझता हूं कि यशपाल आर्य का व्यक्तिगत हित आगे आ गया था। जाने वाले को कहां कोई रोक सका है।
कांग्रेस खेमा उत्साहित
कांग्रेस प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव कहते हैं कि भाजपा सरकार की नीतियों को लेकर यशपाल और संजीव आर्य घुटन महसूस कर रहे थे। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के मुताबिक यशपाल हमसे बिछड़े जरूरी। लेकिन, कांग्रेस की विचारधारा से ओतप्रोत रहे। संजीव आर्य पहली बार विधायक बने, उनका भविष्य उज्जवल है। प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के मुताबिक दोनों नेताओं के कांग्रेस में आने से पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल में इजाफा हुआ है। वहीं हरीश रावत का कहना है कि भाजपा के समय भी यशपाल आर्य को महत्व दिया गया। उनके पास महत्वपूर्ण विभाग रहे। वहीं यशपाल आर्य के बेटे होने के नाते संजीव आर्य ने अपनी अलग पहचान बनाई। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस खेमा एक और नाम अपने पाले में करने में सफल होने वाला था। भाजपा के एक अन्य विधायक उमेश शर्मा काऊ की घर वापसी कराने की पूरी तैयारी थी। काऊ की कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात भी हो चुकी थी। लेकिन, ऐन वक्त पर मामला टल गया।
यशपाल का सियासी सफर
1989 में यशपाल खटीमा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। वहीं 1991 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1993 में उन्होंने जीत दर्ज की तो 1996 में फिर हार मिली। हालांकि इसके बाद अभी तक हर चुनाव में वह विजयी रहे हैं।
वर्ष 2012 में यशपाल मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार भी थे। लेकिन, अन्तिम समय में विजय बहुगुणा ने बाजी मार ली। वर्ष 2002 और 2007 में वे आरक्षित सीट मुक्तेश्वर और 2012 में वे बाजपुर से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। 2017 में चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल होने के बाद वे बाजपुर से दोबारा विधायक चुने गए। वर्ष 2007 से 2014 तक यशपाल ने प्रदेश कांग्रेस की कमान भी संभाली।
चुनाव से पहले नेताओं को अपने पाले में करने की सियासत
चुनावी बयार में नये सियासी घरों की तलाश के दौरान भाजपा पिछले दो माह में तीन विधायकों को पार्टी में शामिल करा चुकी है। इसकी शुरुआत धनौल्टी से निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार से हुई। जिन्होंने साढ़े चार साल बाद अचानक भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद पुरोला से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते राजकुमार ने भी भाजपा को अपना लिया। विधायकी को लेकर उठे बवाल के बीच उन्होंने अपनी विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। इसके बाद चार दिन पहले भीमताल सीट से निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा को भी भाजपा ने पार्टी में शामिल करवा लिया। कांग्रेस में प्रदेश महासचिव रहे कैड़ा ने वर्ष 2012 में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें हार नसीब हुई। इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर पार्टी में शामिल हुए दान सिंह भंडारी को टिकट दिया तो कैड़ा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। अब उन्होंने चुनाव से पहले भगवा खेमे को नया सियासी घर बनाया है।
आप का कांग्रेस-भाजपा पर हमला
आम आदमी पार्टी के उत्तराखण्ड प्रभारी दिनेश मोहनिया ने इस प्रकरण को लेकर भाजपा और कांग्रेस पर दोनों दलों पर निशाना साधा है। मोहनिया कहते हैं कि अब उत्तराखण्ड की जनता को समझ जाना चाहिए कि भाजपा और कांग्रेस एक ही हैं। अभी तक कांग्रेस यशपाल आर्य के कार्यों पर सवाल खड़े कर रही थी। लेकिन, आज कांग्रेस ने ही उन्हें अपने खेमे में शामिल कर लिया है।