बेंगलुरु। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना ने कहा कि हमारा न्याय वितरण अक्सर आम लोगों के लिए बाधाएं पैदा करता है। अदालतों की कार्यप्रणाली और शैली भारत की जटिलताओं के साथ अच्छी तरह से फिट नहीं बैठती है। हमारी प्रणाली, प्रथाएं, नियम मूल रूप से औपनिवेशिक हैं, जो भारतीय आबादी की जरूरतों के हिसाब से सबसे उपयुक्त नहीं हो सकते।
न्यायमूर्ति रमना कर्नाटक राज्य बार काउंसिल द्वारा दिवंगत न्यायमूर्ति मोहना एम. शांतनागौदर को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समय की जरूरत हमारी कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण है। जब मैं भारतीयकरण कहता हूं, तो मेरा मतलब है कि हमारे समाज की व्यावहारिक वास्तविकताओं के अनुकूल होने और हमारी न्याय वितरण प्रणाली को स्थानीय बनाने की जरूरत है।
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सीजेआई ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग उन तर्को या दलीलों को नहीं समझते हैं जो ज्यादातर अंग्रेजी में दी जाती हैं। उनके लिए एक अलग भाषा है। उन्होंने बताया कि इन दिनों फैसला आने में लम्बा वक्त लगता है, जो वादियों की स्थिति को और अधिक जटिल बनाते हैं। निर्णय के निहितार्थ को समझने के लिए पक्षकारों उन्हें अधिक पैसा खर्च करने के लिए मजबूर किया जाता है।
सीजेआई ने कहा कि अदालतों को वादी केन्द्रित होने की जरूरत है, क्योंकि वे अन्तिम लाभार्थी हैं। न्याय वितरण का सरलीकरण हमारी प्रमुख चिंता होनी चाहिए। न्याय वितरण को अधिक पारदर्शी, सुलभ और प्रभावी बनाना महत्वपूर्ण है। प्रक्रियात्मक बाधाएं अक्सर न्याय तक पहुंच को कमजोर करती हैं। आम आदमी को अदालतों और अधिकारियों के पास जाने से डरना नहीं चाहिए। न्यायालय का दरवाजा खटखटाते समय उसे न्यायाधीशों और न्यायालयों से डरना नहीं चाहिए।
उन्होंने कहा कि उन्हें सच बोलने में सक्षम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वकीलों और न्यायाधीशों का यह कर्तव्य है कि वे एक ऐसा वातावरण तैयार करें जो वादियों और अन्य हितधारकों के लिए आरामदायक हो। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी न्याय वितरण प्रणाली का केंद्रबिंदु न्याय चाहने वाला वादी है।